बंगाईगांव (असम) में अष्टान्हिका पर्व आज सम्पन्न, जैन मंदिर में आठ दिन तक हुए 11 लाख जाप, आज हवन यज्ञ करके हुआ समापन : अहिंसा क्रांति
अहिंसा क्रांति/ रोहित छाबड़ा
अष्टान्हिका पर्व आज सम्पन्न, जैन मंदिर में आठ दिन तक हुए 11 लाख जाप, आज हवन यज्ञ करके हुआ समापन :- अहिंसा क्रांति
बंगाईगांव में जैन समाज की महिलाओ ने किए 08 दिन के उपवास व्रत, आज हुआ उनका समान
बंगाईगांव।। जैन धर्मावलंबियों का महान पर्व पर्यूषण के बाद दूसरा अष्टान्हिका महापर्व कार्तिक, फाल्गुन एवं आषाढ़ के अंतिम आठ दिनों में मनाया जाता है। कार्तिक माह का यह पर्व अधिकतर जैन मंदिरों में मनाया जाता है। इस दौरान बंगाईगांव 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आर्यिकारत्नो के सानिध्य में 8 दिन तक 11 लाख जाप किये गए वही विशेष पूजा की गई। आज बुधवार को इस कार्यक्रम का हवन यज्ञ करके हवन कुंड में मंत्रोउचारन द्वारा आहुति देकर समापन हुआ। इसके तहत कुछ श्रावक व्रत एवं उपवास के साथ विशेष पूजा अर्चना कर रहे थे। इस जाप्य अनुष्ठान में सैकड़ों की संख्या में श्रावक श्रावकिआओ ने बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया ओर सवा पांच लाख के संकल्प से ज्यादा 11 लाख से भी ऊपर जाप किये। इसी उपलक्ष्य में आज बुधवार को हवन यज्ञ करके समापन्न किया गया, ये सभी कार्यक्रम आर्यिकारत्न गरिमामती गम्भीरमति रतनमती माताजी के सानिध्य में सहर्ष सम्पन्न हुए। आज हुये हवन यज्ञ में सभी समाजजनों ने मंत्रोउचारन द्वारा आहुतियां दी।
दिगम्बर जैन समाज के प्रवक्ता एवं सयुक्त सचिव रोहित जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि यह बंगाईगांव वासियों का परम् सौभाग्य है कि इस अष्ठानिका पर्व में आर्यिका ससंघ का सानिध्य प्राप्त हुआ। आर्यिका 105 गरिमामती माताजी, 105 गम्भीरमति माताजी रतनमती माताजी के पावन पुनीत सानिध्य में दिगम्बर जैन समाज द्वारा श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में भी अष्टान्हिका पर्व मनाया गया। इन 8 दिनों में मंदिर में नित्य अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, व्रहद जाप इत्यादि विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमो के आयोजन हुए, सभी समाजबंधुजनों ने इन दिनों में विशेष पूजन ध्यान व जप करके अपने कर्मों की निर्जरा की। प्रवक्ता ने विशेष जानकारी देते हुए बताया कि इस दौरान बंगाईगांव की वयोवृद्ध धर्मनिष्ठ कर्तव्यपरायण महिला आचूकि देवी पहाड़िया धर्मपत्नी बाबूलाल पहाड़िया जिन्होंने इससे पूर्व दशलक्षण व्रत का पालन किया एवम सरोज देवी पाटनी धर्मपत्नी प्रमोद पाटनी ने इस पिछले व इस कार्तिक माह अष्ठानिका में आठ दिन के व्रत किये एवं इन दोनों ने इसके पूर्व अपने जीवन में काफी धर्म साधनाएं कर अपने कर्मों को तपस्या से जलाया है। इनका आज सकल दिगम्बर जैन समाज बंगाईगांव द्वारा बहुमान सम्मान किया गया। वही इनको आर्यिकारत्नो ने विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। इस कार्यक्रम के दौरान पूरा भवन उनके सम्मान में तालियो की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
जैन समाज के मंत्री कमल पहाड़िया ने कहा कि इस वर्ष जैन समाज में 02 धर्मपरायण महिलाओं ने अष्ठानिका उपवास व्रत धारण किया है। उन्होंने कहा कि आज 13 नवम्बर को शांतिनाथ मन्दिर जी में आयोज्य पारणा कार्यक्रम में सभी व्रतियों का बहुमान जैन समाज द्वारा आर्यिकारत्न गरिमामती माताजी गम्भीरमति माताजी रतनमती माताजी के सान्निध्य में किया गाया। इसमें व्रतियों को सामूहिक पारणा कराया गया। समाज के अध्यक्ष विजय रारा ने अंत में सभी धर्मप्रेमी बन्धुजनों का सफल आयोजन के लिये आभार जताया। इस कार्यक्रम के दौरान समाज के पदाधिकारी व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, ईन्होंने दोनों व्रतियों के तप की अनुमोदना करते हुए इनके सम्मान में तालियां बजाई व जयकारे लगाए।
आर्यिकारत्नो ने बताया कि क्या है अष्टान्हिका पर्व ?
आर्यिकारत्नो ने बताया अष्टानिका पर्व का जैन समाज में विशेष महत्व होता है। जैन धर्म के अनुसार चारों प्रकार के इंद्र देवों के समूह सहित नन्दीश्वर द्वीप में प्रति-वर्ष आषाढ़-कार्तिक और फाल्गुन मास की अष्ठानिका में पूजा करने आते हैं। नन्दीश्वर द्वीपस्थ जिनालयों की यात्रा में बहुत ही भक्तिभाव से युक्त कल्पवासी देव पूर्व दिशा में, भवनवासी देव दक्षिण दिशा में, व्यंतर देव पश्चिमी दिशा और ज्योतिष देव उत्तर दिशा में विराजमान जिन मंदिर में पूजा करते हैं। जिनेन्द्र प्रतिमाओं की विविध प्रकार से आठ दिनों तक अखंड रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। क्यूंकि मनुष्य अढ़ाई-द्वीप के बाहर आगे नंदीश्वर द्वीप तक नहीं जा सकते इसलिए सभी अपने-अपने मंदिरों में ही नंदीश्वर द्वीप की रचना करके पूजा करते हैं।आर्यिकारत्नो ने बताया अष्ठानिका पर्व साल में तीन बार आते हैं। यह पर्व कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनो के अंतिम आठ दिनों में (अष्ठमी से पूर्णिमा तक) मनाया जाता हैं।
आर्यिकारत्नो के सानिध्य में दिगम्बर जैन मंदिर में सभी पदाधिकारियों और साधर्मी बन्धुओं की उपस्थिति में यह कार्यक्रम किया गया। धर्मसभा में आर्यिकारत्न 105 श्री गरिमामती माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि धर्म को यदि धर्म की भावना से किया जाए तो ही जीवन में उन्नति संभव है। पूज्य माता ने प्रवचन में ध्यान लगाने की विधि विस्तार पूर्वक समझाई। इससे श्रावक अपने जीवन को धर्म के पथ पर आगे बढ़ा सकें, क्योकि धर्म की कोई भी क्रिया ध्यान के बिना सम्भव ही नहीं है।